Saturday 6 January 2018

नए का भय या मस्तिष्क की चाल?


जब भी हम कुछ नया शुरू करते हैं या नया करने का प्रयास करते हैं तो हमारे मस्तिष्क में डर पहले पैदा हो जाता है/ और कई बार ये डर हमारी असफलता का कारण बन जाता है और कई बार इस डर के कारण हम कोई नयी शुरुआत ही नहीं कर पाते हैं/ किन्तु प्रश्न ये उठता है कि क्या यह डर वास्तविक है? क्या हम सच में सक्षम नहीं होते है? आइये इस वारे में आगे बात करते हैं/

मेरा मानना है कि हम सब जब कोई नयी शुरुआत करने का विचार करते हैं तो हमारे पास वो काम करने की क्षमता होती है, या फिर हम उस क्षमता को अर्जित करने की क्षमता होती है/ मेरा कहने का तात्पर्य है कि हम अधिकांशतः अपने ज्ञान और अपनी क्षमताओं के अनुसार ही किसी उद्दयम का चयन करते हैं/ अतः हमारे डर का कोई कारण नहीं होता है/ फिर भी हमारे मस्तिष्क में डर उत्पन्न होता है, उस का क्या कारण है? और उपाय क्या है? (जानने के लिए अंत तक पढ़ें)


नए के डर का कारण/

एक पुरानी कहाबत है कि-
आपका मस्तिष्क एक अच्छा सेवक है
किंतु एक बुरा स्वामी है।

और हमारे डर का कारण हमारे द्वारा अपने मस्तिष्क को स्वामी बन जाने देना है/ जब हमारा मस्तिष्क स्वामी बन जाता है तो वह हमेशा हमें उन्ही कामों को आकर्षित कराता है जो हमें क्षणिक आनंद कि अनुभूति कराते हैं/ और जिन कामों में मस्तिष्क को विचार करना होता है या कोई परिश्रम करना होता है उन कामों से ये सदैव बचने के उपाय ढूंढता रहता है/ कभी ये हमें आलसी बना देता है या कभी हमारे अन्दर अविश्वास पैदा करने के लिए पुरानी असफलताओं की घटनाओं को संकलित करके रख देता है/  और सबसे बड़ा अस्त्र जिसका प्रयोग ये करता है वो है डर/

प्रायः हमें डर उन चीजों से लगता है जिनसे हम अनभिज्ञ होते हैं/  और उस डर को हम उन चीजों को जानकर समझकर दूर कर सकते हैं/ किन्तु हमारा मस्तिष्क ना ही जानना चाहता है और ना ही उन चीजों को जानने और समझने के लिए प्रेरित नहीं करता है/ वल्कि ये अपने ही अन्दर सुरक्षित सूचनाओं को संकलित करके हमारे समक्ष इस प्रकार प्रस्तुत करत है जैसे कि वो नया काम या उद्दयम हमारी क्षमता से बहुत ही बड़ा है और हमारे लिए असाध्य है/ इस प्रकार हम उस और प्रयास बंद कर देते हैं और ये हमें उन नयी  चीजों से अनजान बनाये रखता है और डर कायम रखता है। इस प्रकार मन परिश्रम से बाख जाता है और हमें क्षद्म वस्तुओं और घटनाओं में फसे रहने देता है/

इसका उपाय क्या है?

इसका उपाय है धीरे धीरे स्वामी बनें मस्तिष्क को सेवक बनाना है/ जब भी हम कोई नया उद्दयम या अपने उन्नति के लिए नए प्रयास शुरू करें तो हमें कार्य शुरू होने से पहले अपनी क्षमताओं औए अपने ज्ञान का इमानदारी से आंकलन कर लेना चाहिए/ और उसके बाद उसकी पूर्ती के लिए  अपने प्रयास शुरू कर देने चाहिए/ और शुरू करने के बाद मन के छलावों में ना आकर मस्तिष्क को काम पर लगने के लिए प्रेरित करना चाहिए/ जब भी अनजान वस्तू या कार्य का डर उत्पन्न हो तो हमें उस कार्य को जानने का प्रयास शुरू करने चाहिए जिससे हमारा डर दूर हो जायेगा?
हमारे अन्दर विश्वास उत्पन्न होगा/ और सफलता कि प्राप्ति होगी/


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You suffer more, when you are angry..

What did I learn today, I will tell you in short. I was listening to Sadguru, and he was explaining about the implications of anger.. ...